Chapter I – प्रारंभिक of BNS in Hindi

Section 1:- संक्षिप्त शीर्षक, विस्तार और प्रारंभ।

(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम भारतीय न्याय संहिता, 2023 है।
(2) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे और इस संहिता के भिन्न-भिन्न उपबंधों के लिए भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी ।

(3) प्रत्येक व्यक्ति इस संहिता के उपबन्धों के प्रतिकूल प्रत्येक कार्य या लोप के लिए, जिसका वह भारत के भीतर दोषी होगा, इसी संहिता के अधीन दण्डनीय होगा, अन्यथा नहीं।
(4) भारत से परे किए गए किसी अपराध के लिए जो कोई व्यक्ति भारत में तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा विचारण के लिए दायी है, भारत से परे किए गए किसी कार्य के लिए उसे इस संहिता के उपबन्धों के अनुसार ऐसा बरता जाएगा, मानो वह कार्य भारत के भीतर किया गया था ।
(5) इस संहिता के उपबंध-
(क) भारत से बाहर और परे किसी स्थान में भारत के किसी नागरिक द्वारा ;
(ख) भारत में रजिस्ट्रीकृत किसी पोत या वायुयान पर, चाहे वह कहीं भी हो किसी व्यक्ति द्वारा,
(ग) भारत में अवस्थित किसी कंप्यूटर संसाधन को लक्ष्य बनाकर भारत से बाहर और परे किसी स्थान पर किसी व्यक्ति द्वारा,
किए गए किसी अपराध को भी लागू हैं।
स्पष्टीकरण इस धारा में “अपराध” शब्द के अन्तर्गत भारत से बाहर किया गया ऐसा प्रत्येक कार्य आता है, जो यदि भारत में किया गया होता तो इस संहिता के अधीन दंडनीय होता । दृष्टांत
क, जो भारत का नागरिक है, भारत से बाहर और परे किसी स्थान पर हत्या करता है, वह भारत के किसी स्थान में, जहां वह पाया जाए, हत्या के लिए विचारित और दोषसिद्ध किया जा सकता है।
(6) इस संहिता में की कोई बात, भारत सरकार की सेवा के अधिकारियों, सैनिकों, नौसैनिकों या वायुसैनिकों द्वारा विद्रोह और अभित्यजन के लिए दण्डित करने वाले किसी अधिनियम के उपबन्धों, या किसी विशेष या स्थानीय विधि के उपबन्धों पर प्रभाव नहीं डालेगी ।

Section 2 :- परिभाषाएँ

इस संहिता में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(1) “कार्य” कार्यों की आवली का उसी प्रकार द्योतक है, जिस प्रकार एक कार्य का:
(2) “जीवजंतु” से मानव से भिन्न कोई जीवित प्राणी अभिप्रेत है;
(3) “शिशु” से अठारह वर्ष से कम आयु का कोई व्यक्ति अभिप्रेत है;
(4) “कूटकरण” कोई व्यक्ति, जो एक चीज को दूसरी चीज के सदृश इस आशय से करता है कि वह उस सदृश से प्रवंचना करे, या यह संभाव्य जानते हुए करता है कि उसके द्वारा प्रवंचना की जाएगी, वह “कूटकरण” करता है, यह कहा जाता है।
स्पष्टीकरण 1-कूटकरण के लिए यह आवश्यक नहीं है कि नकल ठीक वैसी ही हो ।
स्पष्टीकरण 2-जब कोई व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के सदृश कर दे और सादृश्य ऐसा है कि उसके दद्वारा किसी व्यक्ति को प्रवंचना हो सकती है, तो जब तक कि प्रतिकूल साबित न किया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि जो व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के इस प्रकार सदृश बनाता है उसका आशय उस सदृश द्वारा प्रवंचना करने का था या

वह यह सम्भाव्य जानता था कि उसके द्वारा प्रवंचना की जाएगी;
(5) “न्यायालय” से वह न्यायाधीश, जिसे न्यायिकतः कार्य करने के लिए विधि द्वारा अकेले ही सशक्त किया गया है, या कोई न्यायाधीश-निकाय, जिसे एक निकाय के रूप में न्यायिकतः कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया है, जबकि ऐसा न्यायाधीश या न्यायाधीश-निकाय न्यायिकतः कार्य कर रहा है, अभिप्रेत है;
(6) “मृत्यु” से जब तक कि संदर्भ से प्रतिकूल प्रतीत न हो, मानव की मृत्यु अभिप्रेत है;
(7) “बेईमानी” से इस आशय से कोई कार्य करना अभिप्रेत है जो एक व्यक्ति को सदोष अभिलाभ कारित करे या अन्य व्यक्ति को सदोष हानि कारित करे :
(8) “दस्तावेज” से कोई ऐसा विषय अभिप्रेत है, जिसको किसी पदार्थ पर अक्षरों, अंकों या चिह्नों के साधनों द्वारा, या उनसे एक से अधिक साधनों द्वारा अभिव्यक्त या वर्णित किया गया है, और इसके अंतर्गत ऐसे इलैक्ट्रॉनिक और डिजिटल अभिलेख भी हैं, जो उस विषय के साक्ष्य के रूप में उपयोग किए जाने के लिए आशयित हैं या जिनका उपयोग किया जा सकेगा;
स्पष्टीकरण 1- यह तत्वहीन है कि किस साधन द्वारा या किस पदार्थ पर अक्षर, अंक या चिह्न बनाए गए हैं, या यह कि साक्ष्य किसी न्यायालय के लिए आशयित है या नहीं, या उसमें उपयोग किया जा सकेगा या नहीं।


दृष्टांत

(क) किसी संविदा के निबंधनों को अभिव्यक्त करने वाला कोई लेख, जिसे उस संविदा के साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जा सकेगा, दस्तावेज है।
(ख) बैंककार पर दिया गया चेक, दस्तावेज है ।
(ग) मुख्तारनामा, दस्तावेज है।
(घ) मानचित्र या रेखांक, जिसको साक्ष्य के रूप में उपयोग में लाने का आशय हो या जो उपयोग में लाया जा सकेगा, दस्तावेज है;
(ङ) जिस लेख में निर्देश या अनुदेश अन्तर्विष्ट हों, दस्तावेज है ।
स्पष्टीकरण 2 अक्षरों, अंकों या चिह्नों के द्वारा, जो कुछ भी वाणिज्यिक या अन्य प्रथा के अनुसार व्याख्या करने पर अभिव्यक्त होता है, वह इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत ऐसे अक्षरों, अंकों या चिह्नों से अभिव्यक्त हुआ समझा जाएगा, चाहे वह वास्तव में अभिव्यक्त न भी किया गया हो ।

दृष्टांत


क एक विनिमयपत्र की पीठ पर, अपना नाम लिख देता है, जो उसके आदेश के अनुसार देय है। वाणिज्यिक प्रथा के अनुसार व्याख्या करने पर इस पृष्ठांकन का अर्थ यह है कि धारक को विनिमयपत्र का भुगतान कर दिया जाए। पृष्ठांकन एक दस्तावेज है और इसका अर्थ उसी प्रकार से लगाया जाएगा मानो हस्ताक्षर के ऊपर “धारक को भुगतान करें” शब्द या उस प्रभाव वाले शब्द लिख दिए गए हों।
(9) “कपटपूर्वक” से कपट करने के आशय से कोई कार्य करना अभिप्रेत है, अन्यथा नहीं ।

(10) “लिंग” पुल्लिंग वाचक शब्द “वह” और उसके व्युत्पन्नों का प्रयोग किसी भी व्यक्ति के लिए किया जाता है, चाहे वह पुरुष या महिला या उभयलिंगी हो ।
स्पष्टीकरण- उभयलिंगी” का वही अर्थ होगा, जो उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 2 के खंड (ट) में है;
(11) “स‌द्भावपूर्वक” कोई बात “स‌द्भावपूर्वक” की गई या विश्वास की गई नहीं कही जाती है, जो सम्यक् सतर्कता और ध्यान के बिना की गई है या विश्वास की गई है:
(12) “सरकार” से केन्द्रीय सरकार या कोई राज्य सरकार अभिप्रेत है;
(13) “संश्रय” के अन्तर्गत किसी व्यक्ति को आश्रय, भोजन, पेय, धन, वस्त्र, आयुध, गोला-बारूद या वाहन के साधन देना, या किन्हीं साधनों से चाहे वे उसी प्रकार के हों या नहीं, जिस प्रकार से इस खंड में प्रगणित हैं, पकड़े जाने से बचने के लिए किसी व्यक्ति की सहायता करना, सम्मिलित है।
(14) “क्षति” से कोई अपहानि अभिप्रेत है, जो किसी व्यक्ति के शरीर, मन, ख्याति या सम्पत्ति को अवैध रूप से कारित हुई है;
(15) “अवैध” और “करने के लिए वैध रूप से आबद्ध” “अवैध” शब्द प्रत्येक उस बात को लागू है, जो अपराध है, या जो विधि द्वारा प्रतिषिद्ध है, या जो सिविल कार्यवाही के लिए आधार उत्पन्न करती है और कोई व्यक्ति उस बात को “करने के लिए वैध रूप से आबद्ध कहा जाता है जिसका लोप करना उसके लिए अवैध है;
(16) “न्यायाधीश” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो शासकीय रूप से न्यायाधीश के रूप में अभिहित किया गया है, इसके अंतर्गत ऐसा कोई व्यक्ति भी आता है, – (i) जो किसी विधिक कार्यवाही में, चाहे वह सिविल हो या दाण्डिक, अन्तिम निर्णय या ऐसा निर्णय, जो उसके विरुद्ध अपील न होने पर अन्तिम हो जाए या ऐसा निर्णय, जो किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा पुष्ट किए जाने पर अन्तिम हो जाए, देने के लिए, विधि द्वारा सशक्त किया गया हो; या
(ii) जो उस निकाय या व्यक्तियों में से एक हो, जिस व्यक्ति-निकाय को ऐसा निर्णय देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया है।
दृष्टांत
किसी आरोप के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग करने वाला कोई मजिस्ट्रेट, जिसके लिए उसे जुर्माना या कारावास का दण्ड देने की शक्ति प्राप्त है, चाहे उसकी अपील होती हो या न होती हो, न्यायाधीश है;
(17) “जीवन” से जब तक संदर्भ से प्रतिकूल प्रतीत न हो, किसी मानव का जीवन अभिप्रेत है;
(18) “स्थानीय विधि” से ऐसी विधि अभिप्रेत है जो भारत के किसी विशिष्ट भाग को ही लागू है;
(19) “पुरुष” से किसी भी आयु का मानव नर अभिप्रेत है;
(20) “मास” और “वर्ष” जहां-कहीं “मास” शब्द या “वर्ष” शब्द का प्रयोग किया गया है, वहां यह समझा जाना है कि मास या वर्ष की गणना ग्रिगोरियन कलैंडर के अनुसार की जानी है;
(21) “चल सम्पत्ति” के अंतर्गत भूमि और वे चीजें, जो भूबद्ध हैं या भूबद्ध किसी चीज से स्थायी रूप से जकड़ी हुई हैं, के सिवाय, प्रत्येक प्रकार की सम्पत्ति आती है;
(22) “वचन” जब तक कि संदर्भ से प्रतिकूल प्रतीत न हो, एकवचन के घोतक शब्दों के अंतर्गत बहुवचन भी है, और बहुवचन के घोतक शब्दों के अंतर्गत एकवचन भी है:
(23) “शपथ” के अंतर्गत किसी शपथ के लिए विधि द्वारा प्रतिस्थापित सत्यनिष्ठ प्रतिज्ञान और ऐसी कोई घोषणा, जिसका किसी लोक सेवक के समक्ष किया जाना या न्यायालय में या अन्यथा सबूत के प्रयोजन के लिए उपयोग किया जाना विधि द्वारा अपेक्षित या प्राधिकृत है, आती है;
(24) “अपराध-उपखंड (क) और उपखंड (ख) में उल्लिखित अध्यायों और धाराओं के सिवाय, “अपराध” शब्द से इस संहिता द्वारा दण्डनीय की गई कोई बात अभिप्रेत है, किंतु – (क) अध्याय 3 और निम्नलिखित धाराओं, अर्थात् धारा की उपधारा (2), उपधारा (3), उपधारा (4) और उपधारा (5), धारा 9, धारा 49, धारा 50, धारा 52, धारा 54, धारा 55, धारा 56, धारा 57, धारा 58, धारा 59, धारा 60, धारा 61, धारा 119, धारा 120, धारा 123, धारा 127 की उपधारा (7) और उपधारा (8), धारा 222, धारा 230, धारा 231, धारा 240, धारा 248, धारा 250, धारा 251, धारा 259, धारा 260, धारा 261, धारा 262, धारा 263, धारा 308 की उपधारा (6) और उपधारा (7) तथा धारा 330 की उपधारा (2) में “अपराध” शब्द से इस संहिता के अधीन, या किसी विशेष विधि या स्थानीय विधि के अधीन दण्डनीय कोई बात अभिप्रेत है और
(ख) धारा 189 की उपधारा (1), धारा 211, धारा 212, धारा 238, धारा 239, धारा 249, धारा 253 और धारा 329 की उपधारा (1) में “अपराध” शब्द का वही अर्थ होगा, जो विशेष विधि या स्थानीय विधि के अधीन दण्डनीय कार्य, ऐसी विधि के अधीन छह मास या उससे अधिक अवधि के कारावास से, चाहे वह जुर्माने सहित हो या रहित, दण्डनीय है;
(25) “लोप” लोपों की किसी आवली का उसी प्रकार ‌द्योतक है, जिस प्रकार एकल लोप का;
(26) “व्यक्ति” के अन्तर्गत कोई भी कंपनी या संगम या व्यक्ति निकाय, चाहे वह निगमित हो या नहीं, आता है;
(27) “लोक” के अन्तर्गत कोई भी वर्ग या कोई भी समुदाय आता है:
(28) “लोक सेवक” से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत हैं, जो निम्नलिखित वर्णनों में से किसी के अधीन आता है, अर्थात् :- (क) सेना, नौसेना या वायु सेना का प्रत्येक आयुक्त अधिकारी;
(ख) प्रत्येक न्यायाधीश, जिसके अन्तर्गत ऐसा कोई भी व्यक्ति आता है जो किन्हीं न्यायनिर्णायक कृत्यों का, चाहे स्वयं या व्यक्तियों के किसी निकाय के सदस्य के रूप में निर्वहन करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया है:
(ग) न्यायालय का प्रत्येक अधिकारी, जिसके अन्तर्गत समापक, रिसीवर या कमिश्नर आता है, जिसका ऐसे अधिकारी के नाते यह कर्तव्य है कि वह विधि या तथ्य के किसी मामले में अन्वेषण या रिपोर्ट करे, या कोई दस्तावेज बनाए, अधिप्रमाणीकृत करे, या रखे, या किसी सम्पत्ति का भार सम्भाले या उस सम्पत्ति का व्ययन करे, या किसी न्यायिक आदेशिका का निष्पादन करे, या कोई शपथ ग्रहण कराए या निर्वचन करे, या न्यायालय में व्यवस्था बनाए रखे और प्रत्येक व्यक्ति, जिसे ऐसे कर्तव्यों में से किन्हीं का पालन करने के लिए न्यायालय द्वारा विशेष रूप से प्राधिकृत किया गया है:
(घ) किसी न्यायालय या लोक सेवक की सहायता करने वाला प्रत्येक असेसर या पंचायत का सदस्य:
(ङ) प्रत्येक मध्यस्थ या अन्य व्यक्ति, जिसको किसी न्यायालय द्वारा या किसी अन्य सक्षम लोक प्राधिकारी दद्वारा कोई मामला या विषय, विनिश्चय या रिपोर्ट के लिए निर्दिष्ट किया गया है।
(च) प्रत्येक व्यक्ति जो किसी ऐसे पद को धारण करता है, जिसके आधार पर वह किसी व्यक्ति को परिरोध में करने या रखने के लिए सशक्त है।
(छ) सरकार का प्रत्येक अधिकारी, जिसका ऐसे अधिकारी के नाते यह कर्तव्य है कि वह अपराधों का निवारण करे, अपरार्थों की सूचना दे, अपराधियों को न्याय के लिए उपस्थित करे, या लोक स्वास्थ्य, सुरक्षा या सुविधा का संरक्षण करे:
(ज) प्रत्येक अधिकारी, जिसका ऐसे अधिकारी के नाते यह कर्तव्य है कि वह सरकार की ओर से किसी सम्पति को ग्रहण करे, प्राप्त करे, रखे या व्यय करे, या सरकार की ओर से कोई सर्वेक्षण, निर्धारण या संविदा करे, या किसी राजस्व आदेशिका का निष्पादन करे, या सरकार के धन-संबंधी हितों पर प्रभाव डालने वाले किसी मामले में अन्वेषण या रिपोर्ट करे या सरकार के धन-संबंधी हितों से संबंधित किसी दस्तावेज को बनाए, अधिप्रमाणीकृत करे या रखे, या सरकार के धन-संबंधी हितों के संरक्षण के लिए किसी विधि के व्यतिक्रम को रोके : (ञ) प्रत्येक व्यक्ति, जो कोई ऐसा पद धारण करता है जिसके आधार पर वह निर्वाचक नामावली तैयार करने, प्रकाशित करने, बनाए रखने, या पुनरीक्षित करने के लिए या निर्वाचन या निर्वाचन के किसी भाग को संचालित करने के लिए सशक्त है: (ट) प्रत्येक व्यक्ति, जो
(i) सरकार की सेवा या वेतन में है या किसी लोक कर्तव्य के पालन के लिए सरकार से फीस या कमीशन के रूप में पारिश्रमिक पाता है।
(ii) साधारण खंड अधिनियम, 1897 की धारा 3 के खंड (31) में यथा परिभाषित किसी स्थानीय प्राधिकारी की, किसी केन्द्रीय या राज्य अधिनियम के दवारा या उसके अधीन स्थापित किसी निगम की या कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 के खंड (45) में यया परिभाषित किसी सरकारी कम्पनी की सेवा या वेतन में है।
स्पष्टीकरण
(क) इस खंड में किए गए वर्णनों में से किसी के अधीन आने वाले व्यक्ति लोक सेवक है, चाहे वे सरकार द्वारा नियुक्त किए गए हों या नहीं:
(ख) प्रत्येक ऐसा व्यक्ति, जो लोक सेवक के ओहदे को वास्तव में धारण किया हुआ है, चाहे उस ओहदे को धारण करने के उसके अधिकार में कैसी ही विधिक त्रुटि हो, लोक सेवक है;
(ग) निर्वाचन” से किसी विधायी, नगरपालिका या अन्य लोक प्राधिकारी के सदस्यों का चयन करने के प्रयोजन से कोई निर्वाचन अभिप्रेत है, चाहे वह कैसे ही स्वरूप का हो, जिसके लिए चयन करने की पद्धति तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन है।
दृष्टांत
नगरपालिका आयुक्त, लोक सेवक है।
(29) “विश्वास करने का कारण कोई व्यक्ति किसी बात का “विश्वास करने का कारण रखता है, यह तब कहा जाता है जब वह उस बात के विश्वास करने का पर्याप्त कारण रखता है, अन्यथा नहीं;
(30) “विशेष विधि से वह विधि अभिप्रेत है, जो किसी विशिष्ट विषय को लागू है:
(31) “मूल्यवान प्रतिभूति से ऐसा कोई दस्तावेज अभिप्रेत है, जो ऐसा दस्तावेज है. या होना तात्पर्थित है, जिसके द्वारा कोई विधिक अधिकार सृजित, विस्तृत, अन्तरित, निर्बन्धित, निर्वापित किया जाए या छोड़ा जाए या जिसके द्वारा कोई व्यक्ति यह अभिस्वीकृत करता है कि वह विधिक दायित्व के अधीन है, या अमुक विधिक अधिकार नहीं रखता है।

(32) “जलयान” से कोई चीज अभिप्रेत है, जो मानव के या सम्पत्ति के जल द्वारा प्रवहण के लिए बनाई गई है।
(33) स्वेच्छ्या कोई व्यक्ति किसी परिणाम को “स्वेच्छ्या कारित करता है, यह तब कहा जाता है, जब वह उसे उन साधर्ना दद्वारा कारित करता है, जिनके दद्वारा उसे कारित करना उसका आशय था या उन साधनों द्वारा कारित करता है जिन साधनों को काम में लाते समय यह जानता था, या यह विश्वास करने का कारण रखता था कि उनसे उसका कारित होना संभाव्य है।
दृष्टांत
क लूट को सुकर बनाने के प्रयोजन से एक बड़े नगर के एक बसे हुए घर में रात को आग लगाता है और इस प्रकार एक व्यक्ति की मृत्यु कारित कर देता है। यहां क का आशय भले ही मृत्यु कारित करने का न रहा हो और वह दुखित भी हो कि उसके कार्य से मृत्यु कारित हुई है तो भी यदि वह यह जानता था कि संभाव्य है कि वह मृत्यु कारित कर दे तो उसने स्वेच्छ्या मृत्यु कारित की है।
(34) ‘वसीयत’ से कोई वसीयती दस्तावेज अभिप्रेत है:
(35) “महिला” से किसी भी आयु की मानव नारी अभिप्रेत है।
(36) ‘सदोष अभिलाभ से विधिविरुद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पति का अभिलाभ अभिप्रेत है, जिसका अभिलाभ प्राप्त करने वाला व्यक्ति वैध रूप से हकदार न हो;
(37) “सदोष हानि” से विधिविरुद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पति की हानि अभिप्रेत है, जिसकी हानि उठाने वाला व्यक्ति वैध रूप से हकदार हो (38) “सदोष अभिलाभ प्राप्त करना” और “सदोष हानि उठाना कोई व्यक्ति सदोष अभिलाभ प्राप्त करता है. यह तब कहा जाता है जब वह व्यक्ति सदोष रखे रखता है और तब भी जब वह सदोष अर्जन करता है। कोई व्यक्ति सदोष हानि उठाता है, यह तब कहा जाता है, जब उसे किसी सम्पति से सदोष अलग रखा जाता है और तब भी जब उसे किसी सम्पत्ति से सदोष वंचित किया जाता है और
(39) उन शब्दों और पर्दा के, जो इसमें प्रयुक्त हैं और इस संहिता में परिभाषित नहीं हैं, किन्तु सूचना प्रौ‌द्योगिकी अधिनियम, 2000 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में परिभाषित हैं, वहीं अर्थ होंगे, जो क्रमशः उस अधिनियम और संहिता में उनके हैं।

Section 3 :- सामान्य स्पष्टीकरण और अभिव्यक्तियाँ

(1) इस संहिता में सर्वत्र, अपराध की प्रत्येक परिभाषा, प्रत्येक दांडिक उपबंध और प्रत्येक ऐसी परिभाषा या दांडिक उपबंध का प्रत्येक दृष्टांत, “साधारण अपवाद” शीर्षक वाले अध्याय में अन्तर्विष्ट अपवादों के अध्यधीन समझा जाएगा, चाहे उन अपवादों को ऐसी परिभाषा, दांडिक उपबंध या दृष्टांत में दुहराया न गया हो ।

दृष्टांत


(क) इस संहिता की वे धाराएं, जिनमें अपराधों की परिभाषाएं अन्तर्विष्ट हैं, यह अभिव्यक्त नहीं करती कि सात वर्ष से कम आयु का शिशु ऐसे अपराध नहीं कर सकता, किन्तु परिभाषाएं उस साधारण अपवाद के अध्यधीन समझी जानी हैं जिसमें यह उपबन्धित है कि कोई बात, जो सात वर्ष से कम आयु के शिशु द्वारा की जाती है, अपराध नहीं है।
(ख) क, एक पुलिस अधिकारी, वारण्ट के बिना, य को, जिसने हत्या की है, गिरफ्तार कर लेता है। यहाँ क सदोष परिरोध के अपराध का दोषी नहीं है, क्योंकि वह य को गिरफ्तार करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध था, और इसलिए यह मामला उस साधारण अपवाद के अन्तर्गत आ जाता है, जिसमें यह उपबन्धित है कि “कोई बात अपराध नहीं है जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो”।
(2) प्रत्येक पद, जिसे इस संहिता के किसी भाग में स्पष्ट किया गया है, इस संहिता के प्रत्येक भाग में उस स्पष्टीकरण के अनुरूप ही प्रयोग किया गया है।
(3) जब कोई सम्पत्ति, किसी व्यक्ति के कारण उस व्यक्ति के पति या पत्नी, लिपिक या सेवक के कब्जे में है, तब वह इस संहिता के अर्थ के अन्तर्गत उस व्यक्ति के कब्जे में है।
स्पष्टीकरण लिपिक या सेवक की हैसियत से अस्थायी रूप से या किसी विशिष्ट अवसर पर नियोजित कोई व्यक्ति इस उपधारा के अर्थ के अन्तर्गत लिपिक या सेवक है।
(4) जब तक कि संदर्भ से प्रतिकूल आशय प्रतीत न हो, इस संहिता के प्रत्येक भाग में किए गए कार्यों का निर्देश करने वाले शब्दों का विस्तार अवैध लोपों पर भी है।
(5) जब कोई आपराधिक कार्य कई व्यक्तियों द्वारा अपने सबके सामान्य आशय को अग्रसर करने में किया जाता है, तब ऐसे व्यक्तियों में से प्रत्येक व्यक्ति उस कार्य के लिए उसी प्रकार दायित्व के अधीन है, मानो वह कार्य अकेले उसी ने किया हो । अपवाद के अन्तर्गत आ जाता है, जिसमें यह उपबन्धित है कि “कोई बात अपराध नहीं है जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो”।
(6) जब कभी कोई कार्य, जो आपराधिक ज्ञान या आशय से किए जाने के कारण ही आपराधिक है, कई व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, तब ऐसे व्यक्तियों में से प्रत्येक व्यक्ति, जो ऐसे ज्ञान या आशय से उस कार्य में सम्मिलित होता है, उस कार्य के लिए उसी प्रकार दायित्व के अधीन है, मानो वह कार्य उस ज्ञान या आशय से अकेले उसी द्वारा किया गया हो ।
(7) जहां कहीं किसी कार्य द्वारा या किसी लोप द्वारा किसी परिणाम का कारित किया जाना या उस परिणाम को कारित करने का प्रयत्न करना अपराध है, वहां यह समझा जाता है कि उस परिणाम का अंशतः कार्य दद्वारा और अंशतः लोप द्वारा कारित किया जाना वही अपराध है।


दृष्टांत


क अंशतः य को भोजन देने का अवैध रूप से लोप करके और अंशतः य को पीटकर साशय य की मृत्यु कारित करता है। क ने हत्या की है।
(8) जब कोई अपराध कई कार्यों द्वारा किया जाता है, तब जो कोई या तो अकेले या किसी अन्य व्यक्ति के साथ सम्मिलित होकर उन कार्यों में से कोई एक कार्य करके उस अपराध के किए जाने में साशय सहयोग करता है, वह उस अपराध को करता है। दृष्टांत
(क) क और ख पृथक् पृथक् रूप से और विभिन्न समयों पर य को विष की छोटी-छोटी मात्राएं देकर उसकी हत्या करने को सहमत होते हैं। क और ख, य की हत्या करने के आशय से सहमति के अनुसार विष देते हैं। य इस प्रकार दी गई विष की कई मात्राओं के प्रभाव से मर जाता है। यहां क और ख हत्या करने में साशय सहयोग करते हैं और उनमें से प्रत्येक ऐसा कार्य करता है, जिससे मृत्यु कारित होती है, वे दोनों इस अपराध के दोषी हैं, यद्यपि उनके कार्य पृथक् हैं। (ख) क और ख संयुक्त जेलर हैं और अपनी उस हैसियत में वे एक कैदी य का बारी-बारी से एक समय में छह घंटे के लिए संरक्षण-भार रखते हैं। क और ख, य की मृत्यु कारित करने के आशय से, य को उस प्रयोजन से भोजन देने का अवैध रूप से लोप करते हुए इस आशय से कि य की मृत्यु कारित कर दी जाए, प्रत्येक अपने हाजिरी काल के दौरान य को भोजन देने का लोप करके वह परिणाम अवैध रूप से कारित करने में जानबूझकर सहयोग करते हैं। य भूख से मर जाता है। क और ख दोनों य की हत्या के दोषी हैं।
(ग) एक जेलर क, एक कैदी य का संरक्षण-भार रखता है। क, य की मृत्यु कारित करने के आशय से, य को भोजन देने का अवैध रूप से लोप करता है, जिसके परिणामस्वरूप य की शक्ति बहुत क्षीण हो जाती है, किन्तु यह भुखमरी उसकी मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त नहीं होती है। क को पदच्युत कर दिया जाता है और ख उसका उत्तरवर्ती होता है। क से दुस्संधि या सहयोग किए बिना ख यह जानते हुए कि ऐसा करने से संभाव्य है कि वह य की मृत्यु कारित कर दे, य को भोजन देने का अवैध रूप से लोप करता है। य भूख से मर जाता है। ख हत्या का दोषी है किन्तु क ने ख को सहयोग नहीं किया। इसलिए क केवल हत्या के प्रयत्न का ही दोषी है।
(9) जहां कई व्यक्ति किसी आपराधिक कार्य को करने में लगे हुए हैं या सम्बद्ध हैं, वहां वे उस कार्य के आधार पर विभिन्न अपराधों के दोषी हो सकेंगे । दृष्टांत
क गम्भीर प्रकोपन की ऐसी परिस्थितियों के अधीन य पर आक्रमण करता है कि य का उसके द्वारा वध किया जाना केवल ऐसा आपराधिक मानव वध है, जो हत्या की कोटि में नहीं आता है। ख जो य से वैमनस्य रखता है, उसका वध करने के आशय से और प्रकोपन के अधीन न होते हुए य का वध करने में क की सहायता करता है। यहां, यद्यपि क और ख दोनों य की मृत्यु कारित करने में लगे हुए हैं, ख हत्या का दोषी है और क केवल आपराधिक मानव वध का दोषी है।